लेखनी कविता -31-Dec-2021
दिन रात भटकते हो
क्यूँ मेरे यार अंधेरे में
नये साल का सूरज
भी निकलेगा तेरे डेरे में
जाने कहाँ गयी सुस्ती
और सिकन दूर छूटी
होके तेरी खिडकी से
एक नई किरण है फूटी
नई उमंगें नई तरंगें
नये काल के फेरे में
नये नये सब काम करो
इस साल नये सवेरे में
दिन रात भटकते हो
क्यूँ मेरे यार अंधेरे में
नूतन वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं
उदयबीर सिंह गौर
खम्हौरा
बांदा
उत्तर प्रदेश
Simran Bhagat
03-Jan-2022 10:16 PM
Very good
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Swati chourasia
02-Jan-2022 07:57 AM
Very beautiful 👌
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